हम नित्यमुक्त हैं। जब परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति होने लगे, तब सब नियमों से स्वयं को मुक्त कर परमात्मा का ही चिंतन, मनन, निदिध्यासन और ध्यान करना चाहिए।
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जब से सृष्टि की रचना हुई है, तब से इस वर्तमान क्षण तक, इतना मधुर और शुभ समय कभी भी नहीं आया। हर क्षण हम सृष्टिकर्ता परमात्मा के साथ एक हैं। चारों ओर आनंद ही आनंद है। हमारी चेतना हर समय पूरी सृष्टि के साथ एक है। पूरी सृष्टि भगवान का ध्यान कर रही है। मैं सारी सृष्टि में हूँ, और सारी सृष्टि मुझ में है। हे सच्चिदानंद परमशिव, तुम कितने सुंदर हो !!
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अब स्वाध्याय और बाहरी सत्संग छूट गया है। इनका कोई महत्व नहीं रहा है, क्योंकि निरंतर परमात्मा से सत्संग हो रहा है। अब परमात्मा के ही चिंतन, मनन, निदिध्यासन, प्राणायाम, ध्यान और समाधि में ही मन लगता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हठयोग के कुछ व्यायाम भी करने चाहियें। मैं मुक्त हूँ, किसी नियम से नहीं बंधा हूँ; मेरे लिए कोई नियम नहीं है। इस सृष्टि में कुछ भी निराकार नहीं है। जिसकी भी सृष्टि हुई है, वह साकार है। भगवान के साकार रूप ही मेरे चैतन्य में रहते हैं। यह जीवन अपने अंतिम क्षण तक साकार परमात्मा का ध्यान करते करते ही व्यतीत हो जायेगा।
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जब परमात्मा की अनुभूति होने लगे, तब परमात्मा का ध्यान ही करना चाहिए। पुस्तकों का अध्ययन और बाहरी सत्संग कभी कभी ही आवश्यक है, सदा नहीं। निरंतर परमात्मा का ही सत्संग हो। ज्ञान का स्त्रोत परमात्मा हैं, पुस्तकें नहीं। अगर आप कहीं जा रहे हैं और आप का लक्ष्य आप को दिखाई देना आरंभ हो जाये तो आपको "मार्ग-निर्देशिका" की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। फिर आपका दृष्टि-पथ आपके लक्ष्य की ओर ही हो जाता है। फिर अपने लक्ष्य को व अपने पथ को ही निहारिये, अन्यत्र कहीं भी नहीं। हमारी प्रथम, अंतिम, और एकमात्र आवश्यकता -- परमात्मा है। वे मिल गए तो सब कुछ मिल गया, और जीवन तृप्त हो गया।
परमात्मरूप आप सभी को नमन ! ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१६ अप्रेल २०२३
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पुनश्च: --- पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की अंधकारमय रात्री में यदि कोई मुझसे पूछे कि ध्रुवतारा कहाँ है, तो मैं उसे अपनी अंगुली का संकेत कर के ध्रुव तारा और सप्तऋषिमण्डल दिखा दूंगा| एक बार उसने देख लिया और ध्रुवतारे की पहिचान कर ली तो फिर मेरी अंगुली का कोई महत्व नहीं है| यदि मैं यह अपेक्षा करूँ कि वह मेरे अंगुली का भी सदा सम्मान करे तो यह मेरी मूर्खता होगी| उत्तरी गोलार्ध की बात मैंने इस लिए की है क्योंकि ध्रुवतारा और सप्तऋषिमण्डल इस पृथ्वी पर भूमध्य रेखा के उत्तर से ही दिखाई देते हैं, दक्षिण से नहीं| जितना उत्तर में जाओगे उतना ही स्पष्ट यह दिखाई देने लगेगा| भूमध्य रेखा के दक्षिण से ध्रुव तारे व सप्तऋषिमण्डल को नहीं देख सकते|
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