Saturday, 22 February 2025

एक आध्यात्मिक साधक कभी -- धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य, और सुख-दुःख की परवाह नहीं करता ---

एक आध्यात्मिक साधक कभी -- धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य, और सुख-दुःख की परवाह नहीं करता। उसकी रुचि इन सब में नहीं होती। जैसे चुंबक की सूई सदा उत्तर दिशा में ही रहती है, वैसे ही प्रियतम परमात्मा के सिवाय उसे अन्य कुछ भी दृष्टिगत नहीं होता। वास्तव में परमात्मा के सिवाय अन्य सब व्यर्थ है।
भगवान के चरण कमलों में आश्रय चाहोगे तो वे अपने हृदय में ही आश्रय दे देंगे।
ॐ तत्सत् !!
०७ जुलाई २०२२

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