Monday, 24 January 2022

देवता हमारी सहायता क्यों नहीं करते? ---

क्योंकि उनकी दृष्टि में हम चोर हैं। देवताओं को हमारा कल्याण करने की शक्ति हमारे द्वारा किए हुए यज्ञों आदि से ही प्राप्त होती है। हम उन्हें यज्ञ आदि द्वारा शक्ति देंगे तो वे उचित समय पर वृष्टि आदि से हमारा कल्याण करेंगे। गीता में भगवान कहते हैं --

"देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ॥३:११॥"
"इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः॥३:१२॥"
"यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।
भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्॥३:१३॥"
अर्थात् -- तुम लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं की उन्नति करो और वे देवतागण तुम्हारी उन्नति करें। इस प्रकार परस्पर उन्नति करते हुये परम श्रेय को तुम प्राप्त होगे॥ --
यज्ञ द्वारा पोषित देवतागण तुम्हें इष्ट भोग प्रदान करेंगे। उनके द्वारा दिये हुये भोगों को जो पुरुष उनको दिये बिना ही भोगता है वह निश्चय ही चोर है॥ --
यज्ञ के अवशिष्ट अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाते हैं किन्तु जो लोग केवल स्वयं के लिये ही पकाते हैं वे तो पापों को ही खाते हैं॥
.
मंगलमय शुभ कामनायें और सप्रेम नमन !!
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१७ जनवरी २०२२

No comments:

Post a Comment