Friday, 20 June 2025

अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस की शुभ कामनाएँ :---

 अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस की शुभ कामनाएँ :---

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बिना ब्रह्मचर्य के कोई योगी नहीं हो सकता। योग है -- कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर परमशिव से मिलन। बिना ब्रह्मचर्य का पालन किए कोई कुंडलिनी जागरण का प्रयास करेगा, तो उसका मष्तिष्क निश्चित रूप से विक्षिप्त होगा, और वह स्थायी मनोरोगी हो जाएगा।
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खेचरी-मुद्रा को सिद्ध किए बिना योग में सिद्धि नहीं मिलती। इसके लिए योगिराज श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय ने तालव्य क्रिया का अभ्यास बताया था। इसमें जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर एक झटके के साथ बाहर की ओर फेंक देते हैं। बार-बार यह अभ्यास किशोरावस्था से ही सिखाना चाहिए। साथ साथ जीभ के अगले भाग को सूती कपड़े से पकड़ कर दिन में तीन-चार बार धीरे धीरे बिना किसी कष्ट के खींच कर लंबी करने का अभ्यास करना चाहिए। खेचरी का यह तो है भौतिक पक्ष। दूसरा है मानसिक पक्ष जो एक जन्म में सिद्ध नहीं होता। यह है आकाश में विचरण। एक सिद्ध योगी इस भौतिक शरीर की चेतना से बाहर निकल कर आकाश में ही ध्यानस्थ होता है, और आकाश में विचरण कर के इस देह में बापस आ जाता है। यह खेचरी की सिद्धि है। जो खेचरी नहीं कर सकते वे अर्ध-खेचरी का अभ्यास करें। साधना के समय जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालु से सटाकर रखें।
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क्रिया-योग के अभ्यास से कुंडलिनी का जागरण होता है। लेकिन इसका अभ्यास गुरु के मार्गदर्शन में ही होना चाहिए। योग में सिद्धि के लिए एक स्वस्थ शरीर, योग-क्रियाओं का ज्ञान, मन में लगन, भक्ति और अभीप्सा चाहिए। हठ योग का ज्ञान और अभ्यास -- अन्य योगों की साधना के लिए आवश्यक है। हठयोग के तीन ही प्रामाणिक ग्रंथ हैं --
(१) घेरण्ड संहिता, (२) हठयोग प्रदीपिका, और (३) शिव-संहिता।
इन्हीं का विस्तार अन्य हजारों पुस्तकें हैं। पातंजलि के 'योगदर्शन' का स्वाध्याय बाद में या साथ-साथ करें।
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वैसे योग साधना का आरंभ यजुर्वेद के कृष्ण-यजुर्वेद भाग से हैं। श्वेताश्वतरोपनिषद का स्वाध्याय उन सब को करना चाहिए जो योगी बनना चाहते हैं। अन्य भी ज्ञात-अज्ञात अनेक उपनिषद हैं। मेरे लिए तो श्रीमद्भगवद्गीता - योग का सर्वोच्च ग्रंथ है।
पुनश्च आप सब को मंगलमय शुभ कामना। भगवान की परम कृपा सभी पर हो।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ जून २०२३

कई साधक शिकायत करते हैं कि उनकी साधना नहीं हो रही है ---

 कई साधक शिकायत करते हैं कि उनकी साधना नहीं हो रही है।

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यदि साधना में किसी भी तरह का व्यवधान है तो एक बार तो एकांत में मौन होकर खूब जप-यज्ञ करें। कोई दिखावा न करें, यह साधक के और साध्य के मध्य का निजी मामला है। फिर चलते-फिरते, सोते-जागते, हर समय निरंतर अपना जप करते रहें। औपचारिक रूप से भी यह एक नियम बना लीजिये कि न्यूनतम इतनी मात्रा में इतना जप तो नित्य करना ही है। उस संकल्प पर दृढ़ रहें।
गीता में भगवान कहते हैं --
"महर्षीणां भृगुरहं गिरामस्म्येकमक्षरम्।
यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि स्थावराणां हिमालयः॥१०:२५॥"
अर्थात् - "महर्षियोंमें मैं भृगु हूँ, वाणीसम्बन्धी भेदोंमें -- पदात्मक वाक्यों में एक अक्षर -- ओंकार हूँ, यज्ञों में जपयज्ञ हूँ, और स्थावरों में अर्थात् अचल पदार्थों में हिमालय नामक पर्वत हूँ।"
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जो साधक हैं वे तो मेरी बात को समझते हैं। और कोई न समझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता। सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ और आशीर्वचन !!
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२१ जून २०२२

अंतर्राष्ट्रीय "योग-दिवस" पर सभी का अभिनन्दन और शुभ कामनाएँ !

 अंतर्राष्ट्रीय "योग-दिवस" पर सभी का अभिनन्दन और शुभ कामनाएँ !

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आध्यात्मिक दृष्टि से योग है अपने अहंभाव का परमात्मा में पूर्ण विसर्जन, यानि जीवात्मा का परमात्मा से मिलन ! हठयोग तो उसकी तैयारी मात्र है, क्योंकि साधना के लिए चाहिए एक स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन।
तंत्र की भाषा में योग है -- कुण्डलिनी महाशक्ति का परमशिव से मिलन।
मार्ग है -- परमप्रेम और उपासना।
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जितना आवश्यक हो उतना ही स्वाध्याय करो, अधिक नहीं | यानि पढो पर सिर्फ प्रेरणा प्राप्त करने के लिए ही | अधिक अध्ययन की आवश्यकता नहीं है।
खूब ध्यान करो। ध्यान के लिए शक्तिशाली देह, दृढ़ मनोबल, प्राण ऊर्जा और आसन की दृढ़ता चाहिए। साथ-साथ परमात्मा से परमप्रेम, और शुद्ध आचार-विचार भी चाहिए।
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किसी ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय सिद्ध आचार्य योगी से प्राणायाम, प्रत्याहार और धारणा के साथ साथ ध्यान की विधि सीख लें। प्रभु कृपा से यम-नियम अपने आप सिद्ध हो जायेंगे।
योग मार्ग में सर्वप्रथम और सबसे महत्व पूर्ण सिद्धि है -- "अंतःकरण की पवित्रता"। अंतःकरण पवित्र होगा तभी ह्रदय में प्रभु आयेंगे।
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सर्वदा निरंतर परमात्मा का चिंतन करो। हर समय भगवान को अपनी स्मृति में रखो। सबसे बड़ी आवश्यकता भगवान की भक्ति है जिसके बिना कोई योगी नहीं हो सकता। जिनके एक भृकुटी विलास मात्र से हज़ारों करोड़ ब्रह्मांडों की सृष्टि, स्थिति और विनाश हो सकता है, वे जब आपके ह्रदय में होंगे तो क्या संभव नहीं है।
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ॐ नमः शिवाय !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ जून २०२२

सनातन हिन्दू धर्म सनातन और शाश्वत है ---

 सनातन हिन्दू धर्म सनातन और शाश्वत है ---

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सनातन धर्म स्वयं परमात्मा द्वारा निर्मित प्रकृति का धर्म है जिसे न तो कोई परिवर्तित कर सकता है, और न कोई नष्ट कर सकता है। सनातन धर्म से ही यह सृष्टि निर्मित हुई है, सनातन धर्म ने ही इसे धारण कर रखा है, और सनातन धर्म से ही इसका संहार होगा। सनातन धर्म है तभी तो सृष्टि का अस्तित्व है। सनातन धर्म नहीं होगा तो यह सृष्टि भी नहीं रहेगी।
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आत्मा शाश्वत है। जब तक जीवात्मा परमात्मा को उपलब्ध नहीं हो जाती, तब तक उसे कर्मफलों को भोगने के लिए बार-बार पुनर्जन्म लेना ही पड़ता है। परमात्मा से दूरी दुःख है, और समीपता सुख है। परमात्मा को उपलब्ध होने के साधन श्रुतियों व आगम ग्रन्थों में बताए गए हैं। यही सनातन धर्म का सार है, बाकी सब विस्तार है।
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इस सृष्टि में अपनी तमोगुणी सुविधा, स्वार्थ, लोभ और अहंकार के वशीभूत होकर मनुष्य अपने राजनीतिक साम्राज्यों के विस्तार हेतु अनेक आसुरी मत-मतांतरों, मज़हबों और रिलीजनों की सृष्टि कर लेते हैं। पर उनसे परमात्मा को पाने की अभीप्सा यानि प्यास कभी शांत नहीं होती। उनसे किसी को तृप्ति, संतोष व आनंद भी नहीं मिलता। ये हमें परमात्मा की प्राप्ति नहीं करा सकते। समय के साथ वे आसुरी मत अपने आप ही नष्ट हो जाते हैं।
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हमें तो अपना उद्धार करना ही है। गीता में भगवान कहते हैं --
"उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥६:५॥"
अर्थात् -- मनुष्य को अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिये और अपना अध: पतन नहीं करना चाहिये; क्योंकि आत्मा ही आत्मा का मित्र है और आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) शत्रु है॥
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श्रुति भगवती कहती है -- "एको हंसो भुवनस्यास्य मध्ये स एवाग्नि: सलिले संनिविष्ट:। तमेव विदित्वाति मृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेSयनाय॥"
(​श्वेताश्वतरोपनिषद् ६/१५).
अर्थात् -- इस ब्रह्मांड के मध्य में जो एक "हंसः" यानि एक प्रकाशस्वरूप परमात्मा परिपूर्ण है; जल में स्थितअग्नि: है। उसे जानकर ही (मनुष्य) मृत्यु रूप संसार से सर्वथा पार हो जाता है। दिव्य परमधाम की प्राप्ति के लिए अन्य मार्ग नही है॥
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गुरुकृपा से इस सत्य को समझते हुए भी, यदि हम परमात्मा को समर्पित न हो सकें तो हमारे जैसा अभागा अन्य कोई नहीं हो सकता। सनातन धर्म की रचना स्वयं परमात्मा ने की है। मनुष्यों के रचे हुये सिद्धान्त नष्ट हो जाएँगे लेकिन परमात्मा का रचा हुआ सनातन धर्म शाश्वत है। जो दूसरों को तलवार से काटते हैं, वे तलवार से ही काटे जाएँगे।
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सनातन हिन्दू धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण होगा। असत्य और अंधकार की शक्तियों का पराभव होगा। भारत माता अपने द्वीगुणित परम वैभव के साथ अखंडता के सिंहासन पर बिराजमान होंगी। हर हर महादेव !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ जून २०२२

जीवात्मा और परमात्मा का मिलन ही योग-दर्शन है|

जीवात्मा और परमात्मा का मिलन ही योग-दर्शन है|

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जिस मोटर-साइकिल (मनुष्य-देह) पर हम यात्रा कर रहे हैं, वह भी अच्छी हालत में होनी चाहिए|
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ....
Yoga is an art of motorcycle maintenance.
इसे समझ कर ही हम आगे की बात समझ सकेंगे| यह मूलभूत बात है| हृदय में परमात्मा को पाने की अभीप्सा, परमप्रेम और उपासना ही मेरा स्वधर्म, स्वभाव व जीवन हैै। इसी में सनातनधर्म और राष्ट्र का हित निहित है।
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जिस वाहन पर यह लोकयात्रा कर रहा हूँ, उस वाहन की क्षमता व हालत अब बिल्कुल भी ठीक नहीं है. सिर्फ दृष्टिकोण बदल गया है. यह वाहन भी "वे" हैं और वाहक भी "वे" ही हैं.
He is the pilot of this aircraft and the fragile aircraft too. .
सभी प्राणियों को मैं नमन करता हूँ, क्योंकि प्राण रूप में स्वयं परम-पुरुष भगवान नारायण उन में उपस्थित हैं।
प्राणान्नमो भगवते पुरुषाय तुभ्यम् ---
ध्रुव उवाच -
योऽन्तः प्रविश्य मम वाचमिमां प्रसुप्तां
संजीवयत्यखिलशक्तिधरः स्वधाम्ना ।
अन्यांश्च हस्तचरणश्रवणत्वगादीन्
प्राणान्नमो भगवते पुरुषाय तुभ्यम् ॥ - श्रीमद् भागवतम् ४.९.६
अर्थात् -- हे प्रभो! आपने ही मेरे अंतःकरण में प्रवेश कर मेरी सोई हुई वाणी को सजीव किया है, तथा आप ही हाथ,पैर कान और त्वचा आदि इंद्रियों को चेतना प्रदान करते हैं। मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।
Prostration to You, O Bhagavān, the supreme Consciousness, possessor of all powers, who, having entered my being, has activated my dormant speech, and likewise has empowered the other organs such as the hands, feet, ears, skin and all the vital forces, by virtue of His mere Presence.

(Re-Edited & Re-Posted) "रथस्थं वामनं दृष्ट्वा पुनर्जन्म न विद्यते।" (स्कन्द पुराण) ----

 (Re-Edited & Re-Posted) "रथस्थं वामनं दृष्ट्वा पुनर्जन्म न विद्यते।" (स्कन्द पुराण)

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इसका भावार्थ है कि इस शरीर रूपी रथ में जो सर्वव्यापी सूक्ष्म आत्मा को देखता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता है। यह गुरुकृपा से ही समझ में आने वाला विषय है। परमात्मा को वही प्राप्त करता है जो इस शरीर रूपी रथ में सर्वव्यापी सूक्ष्म आत्मा को अनुभूत करता है।
अपना सम्पूर्ण ध्यान कूटस्थ सूर्य-मण्डल पर केन्द्रित कर के अनंत ब्रह्म में लीन हो जाना ही वास्तविक योगाभ्यास है।
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हम झूले में ठाकुर जी को झूला झुला कर उत्सव मनाते हैंं, यह तो प्रतीकात्मक है। लेकिन वास्तविक झूला तो कूटस्थ में है, जहाँ सचमुच आत्मा की अनुभूति --ज्योति, नाद व स्पंदन के रूप में होती है। तब सौ काम छोड़कर भी उस में लीन हो जाना चाहिए। यह स्वयं में एक उत्सव है। ज्योति, नाद व भागवत-स्पंदन की अनुभूति होने पर पूरा अस्तित्व आनंद से भर जाता है जैसे कोई उत्सव हो। यही ठाकुर जी को झूले में डोलाना है।
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तंत्र शास्त्रों में इसे दूसरे रूप में समझाया गया है --
"पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा, यावत् पतति भूतले।
उत्थाय च पुनः पीत्वा, पुनर्जन्म न विद्यते॥" (तन्त्रराज तन्त्र).
अर्थात् पीये, और बार बार पीये जब तक भूमि पर न गिरे| उठ कर जो फिर से पीता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता।
यह एक बहुत ही गहरा ज्ञान है जिसे एक रूपक के माध्यम से समझाया गया है।
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आचार्य शंकर ने "सौंदर्य लहरी" ग्रंथ के आरम्भ में ही भूमि-तत्त्व मूलाधारस्थ कुण्डलिनी के सहस्रार में उठ कर परमशिव के साथ विहार करने का वर्णन किया है। विहार के बाद कुण्डलिनी नीचे भूमि तत्त्व के मूलाधार में वापस आती है। बार बार उसे सहस्रार तक लाकर परमेश्वर से मिलन कराने पर पुनर्जन्म नहीं होता है। (यह क्रिया-योग साधना का सार है)
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गीता में भगवान कहते हैं --
"आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते॥८:१६॥"
अर्थात् -- हे अर्जुन ! ब्रह्म लोक तक के सब भुवन पुनरावर्ती हैं। परन्तु, हे कौन्तेय ! मुझे प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता॥
यह समझ में आ जाये तो सार की सारी बातें समझ में आ जाती है।
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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमो नारायण !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
आप सब महापुरुषों को नमन !! ॐ स्वस्ति !! ॐ गुरु !! जय गुरु !!
कृपा शंकर
२१ जून २०२५

अपने अहंभाव का परमात्मा में पूर्ण विसर्जन ही योग है। आज अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस है। सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ ---

 अपने अहंभाव का परमात्मा में पूर्ण विसर्जन ही योग है।

आज अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस है। सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ ---
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आज अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस है। इसके लिए प्रधानामंत्री श्री नरेंद्र मोदी बधाई के पात्र हैं। उन्हीं के प्रयासों से पूरे विश्व में आज अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस मनाया जा रहा है। योग के नाम पर वर्तमान में जो सिखाया जा रहा है है वह हठयोग है। पूरा हठयोग नाथ-संप्रदाय की देन है। इसके उपलब्ध तीन मूल ग्रंथ हैं -- शिव-संहिता, हठयोग-प्रदीपिका, और घेरण्ड-संहिता। हजारों पुस्तकें इन पर लिखी गई हैं। इनके अतिरिक्त और भी कोई ग्रंथ हैं तो मुझे उनका ज्ञान नहीं है। बाबा रामदेव जो हठयोग सिखाते हैं वह सब घेरण्ड-संहिता का ज्ञान है, लेकिन वे श्रेय पातंजलि को देते हैं। पातंजलि ने कहीं भी हठयोग नहीं सिखाया है।
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योग में आध्यात्म भी हैं, तंत्र भी है और हठयोग भी है। योग-साधना का आरंभ कृष्ण-यजुर्वेद से हैं। श्वेताश्वतरोपनिषद का स्वाध्याय उन सब को करना चाहिए जो योगी बनना चाहते हैं। अन्य भी ज्ञात-अज्ञात अनेक उपनिषद हैं, जिनमें योगिक साधनाओं के बारे में विस्तार से वर्णन है। मेरे लिए तो श्रीमद्भगवद्गीता ही योग का सर्वोच्च ग्रंथ है।
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तंत्र के अनुसार कुंडलिनी महाशक्ति का परमशिव से मिलन ही योग है। यह अनुभूति का विषय है, बुद्धि का नहीं। बिना ब्रह्मचर्य के कोई सिद्ध योगी नहीं हो सकता। खेचरी-मुद्रा की सिद्धि से योग-साधना बड़ी सुगम हो जाती है। खेचरी का दूसरा पक्ष है -- आकाश में विचरण॥ साधना के समय जीभ को ऊपर की ओर मोड़कर तालु से सटाकर रखने का भी अभ्यास करें।
क्रिया-योग की साधना में आध्यात्म भी है, तंत्र भी है और हठयोग भी है। तंत्र की दस महाविद्याओं में श्रीविद्या की साधना भी कुंडलिनी जागरण है। यह एक मोक्षदायिनी विद्या है लेकिन इसका दुरुपयोग अधिक हो रहा है।
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सर्वदा निरंतर परमात्मा का चिंतन करो। हर समय भगवान को अपनी स्मृति में रखो। सबसे बड़ी आवश्यकता भगवान की भक्ति है जिसके बिना कोई योगी नहीं हो सकता। जिनके एक भृकुटी विलास मात्र से हज़ारों करोड़ ब्रह्मांडों की सृष्टि, स्थिति और विनाश हो सकता है, वे जब ह्रदय में होंगे तो क्या संभव नहीं है।
आप सब को मंगलमय शुभ कामना। भगवान की परम कृपा सभी पर हो।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२१ जून २०२४

अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस पर संकल्प .....

 अंतर्राष्ट्रीय योग-दिवस पर संकल्प .....

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इधर-उधर की फालतू बातों पर मुझे ध्यान नहीं देना चाहिए| मेरी अंतर्प्रज्ञा मुझे निरंतर चेतावनी दे रही है कि इस मोटर-साइकिल (मनुष्य-देह) का अब कोई भरोसा नहीं है| समय बहुत कम है| आने वाला समय अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है| काम बहुत बाकी है| सत्यनिष्ठा से जो भी समय बचा है उसमें .(१) नित्य नियमित ऊर्जादायी व्यायाम (Energization exercises) करो|
(२) हंसःयोग (अजपा-जप) व नाद-श्रवण द्वारा परमात्मा का अधिकतम ध्यान करो| (३) क्रियायोग उपासना नियमित करो व क्रिया की परावस्था (ब्राह्मी स्थिति) में रहने का नित्य-नियमित वैराग्यपूर्वक अभ्यास करो|
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ब्रह्मरंध्र से बाहर की सर्वव्यापी अनंतता से भी परे परम ज्योतिर्मय कूटस्थ ब्रह्म परमशिव ही मेरे उपास्य हैं| वे ही मेरे इष्ट हैं, वे ही भगवान वासुदेव हैं, वे ही विष्णु हैं और वे ही पारब्रह्म परमेश्वर हैं| उन्हीं में मेरी स्थिति हो| कहीं कोई भेद न हो| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० जून २०२०