Tuesday, 10 June 2025

भगवान कहाँ नहीं है? ---

भगवान कहाँ नहीं है?

बिना श्रद्धा, विश्वास, भक्ति और अभीप्सा के तो कुछ भी नहीं मिलता। जब पूर्ण श्रद्धा, विश्वास, भक्ति, और अभीप्सा हो तभी भगवान की अनुभूतियाँ हो सकती हैं, अन्यथा नहीं।
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दिन में किसी ऊँचे पर्वत पर या किसी ऐसे ऊँचे स्थान पर चले जाओ जहाँ से खूब दूर दूर तक देख सकते हो। जहाँ तक आपकी दृष्टि जाती है, और खुली आँखों से जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, वे भगवान विष्णु हैं जो यह विश्व बन गए हैं। वह विस्तार आप स्वयं हैं। यह नश्वर देह नहीं। एक कंबल के आसन पर कमर सीधी रखते हुए उत्तर या पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाओ, और इस अनुभूति और दृश्य को अपने भ्रूमध्य में क़ैद कर लो, और उस का ध्यान करो।
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इसी तरह रात्रि में जब बादल या कोहरा न हो, और आकाश पूर्णतः साफ हो, खुली आँखों से ऊपर, नीचे और हर ओर देखिये। ये आकाश-गंगायें, उनके नक्षत्र, और उनके सारे ग्रह-उपग्रह, और यह सारा विस्तार -- भगवान विष्णु हैं, जो यह विश्व/सृष्टि बन गए हैं। आप भी उनके साथ एक हैं। भगवान का खूब ध्यान करो। कर्ता तो भगवान स्वयं हैं, आप तो निमित्त मात्र हैं।
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जब भी भक्तिभाव उमड़े, घर के एकांत में किसी ऐसे स्थान पर कमर सीधी रखते हुए ऊनी आसन पर बैठ जाओ, जहाँ आपको कोई परेशान न करे। नित्य कम से कम ढ़ाई-तीन घंटे भगवान का ध्यान करो। इस सृष्टि में निःशुल्क तो कुछ भी नहीं है। हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है। हमारी श्रद्धा, विश्वास, भक्ति (परमप्रेम) और अभीप्सा -- भगवान को पाने की कीमत है, जिनके बिना भगवान नहीं मिलते।
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जो भी कार्य आप करते हो, यह भाव रखो कि आपके माध्यम से भगवान स्वयं वह कार्य कर रहे हैं। वे ही इन पैरों से चल रहे हैं, वे ही इन आँखों से देख रहे हैं, इन कानों से वे ही सुन रहे हैं, और वे ही आपके अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) के स्वामी हैं। अपने अन्तःकरण को उन्हीं में समर्पित कर दीजिये और आत्मा के अतिरिक्त अनात्मा का चिंतन न करें। आप जो साधना/उपासना कर रहे हैं वह भी वे स्वयं ही कर रहे हैं। अपने पुण्य-पाप, गुण-अवगुण सब उन्हीं को समर्पित कर दें। पूरे दिन मानसिक रूप से भागवत मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) या राम नाम (रां) का, या अपनी गुरु-परंपरा के मंत्र का मानसिक जप करते रहें। जब भूल जाएँ तब याद आते ही फिर जपना आरंभ कर दें।
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और मेरे पास कहने को कुछ भी नहीं है। किन्हीं के किसी भी प्रश्न का उत्तर मैं नहीं दे सकता। इससे अधिक कुछ जानना है तो किन्हीं श्रौत्रीय, ब्रहमनिष्ठ आचार्य से सविनय ससम्मान पूछिए। वे आपकी हर जिज्ञासा का उत्तर देंगे।
तत्व रूप से विष्णु और शिव में कोई अंतर नहीं है। दोनों एक ही हैं। भगवान की वे दो पृथक-पृथक अभिव्यक्तियाँ हैं। यथार्थ में दोनों ही एक हैं।
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मंगलमय शुभ कामनाएँ॥ आप सब को नमन॥
ॐ तत्सत्॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ ॐ नमः शिवाय॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
१० जून २०२३

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