Monday, 23 June 2025

अहंकार और ब्रह्मभाव में क्या अंतर है? --- .

 अहंकार और ब्रह्मभाव में क्या अंतर है? ---

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हम परमात्मा के अंश, परमात्मा के अमृतपुत्र, और सच्चिदानंद के साथ एक हैं। यह होते हुए भी स्वयं को यह शरीर समझते हैं, यही हमारा अहंकार है।
शरीर के धर्म हैं -- भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी आदि। प्राणों का धर्म है -- बल आदि। मन का धर्म -- है राग-द्वेष, मद यानि घमंड आदि। चित्त का धर्म है -- वासनाएँ आदि। इन सब को अपना समझना अहंकार है।
'अहं' केवल सर्वव्यापि 'आत्म-तत्व' का नाम है जिसे हम नहीं समझते इसलिए अपने शरीर, मन और बुद्धि आदि को ही हम स्वयं मान लेते हैं। यही अहंकार है।
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कूटस्थ-चैतन्य यानि ब्राह्मी-चेतना से युक्त जब कोई महात्मा - "शिवोSहम् शिवोSहम् अहम् ब्रह्मास्मि" कहता है, तब यह उसकी अहंकार की यात्रा यानि कोई ego trip नहीं है। यह उसका वास्तविक अंतर्भाव है। अहं ब्रह्मास्मि' यानि मैं ब्रह्म हूँ, यह कहना कोई अहंकार नहीं है। अहंकार है स्वयं को यह देह, मन, और बुद्धि समझ लेना।
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आत्मा का धर्म है ... परमात्मा के प्रति अभीप्सा और परम प्रेम। यही हमारा स्वधर्म है। परमात्मा की सर्वव्यापकता के साथ एक होकर कह सकते हैं -- शिवोंहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि॥
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यह अनुभूति का विषय है, बुद्धि का नहीं। आप सब निजात्माओं को मेरा नमन।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२३ जून २०२२

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