Monday, 23 June 2025

त्रिभंग मुद्रा ---

 त्रिभंग मुद्रा ---

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भगवान श्रीकृष्ण की जहाँ भी आराधना होती है, उनका विग्रह "त्रिभंग मुद्रा" में होता है। इसे "त्रिभंग मुरारी मुद्रा" भी कहते हैं। इसके पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य है। तीन -चार वर्ष पूर्व मैंने इस विषय पर एक लेख भी लिखा था, लेकिन मुझे उस लेख से बिलकुल भी संतुष्टि नहीं मिली थी। दुबारा फिर लिखने की इच्छा थी, पर कभी लिख नहीं पाया। अब और लिख भी नहीं पाऊँगा। मैंने मुंडकोपनिषद, दुर्गासप्तशती, देवीअथर्वशीर्ष, और कुछ अन्य ग्रन्थों के संदर्भ भी दिये थे। यह अज्ञान की तीन ग्रंथियों -- ब्रह्मग्रंथि, विष्णुग्रंथि, और रुद्रग्रंथि के भेदन का प्रतीक है, जो क्रमशः मूलाधारचक्र, अनाहतचक्र और आज्ञाचक्र में होती हैं। नवार्ण -मंत्र का जप, और षटचक्रों में भागवत मंत्र का जप भी एक विशेष गोपनीय विधि से इसमें होता है। इसका ज्ञान कई महात्माओं को होता है, लेकिन वे इसकी चर्चा अपनी गुरु-परंपरा से बाहर नहीं करते।
इस लेख से हो सकता है साधकों में कुछ जिज्ञासा जगे, और वे इस विषय पर स्वाध्याय और सत्संग द्वारा ज्ञान प्राप्त करे। सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ और नमन!!
ॐ तत्सत्
कृपा शंकर
२३ जून २०२२

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