Thursday, 19 June 2025

साकार रूप में स्वयं वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण मेरे समक्ष शांभवी-मुद्रा में ध्यानस्थ हैं ---

साकार रूप में स्वयं वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण मेरे समक्ष शांभवी-मुद्रा में ध्यानस्थ हैं। उनके बिना मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। कभी कभी वे त्रिभंग-मुद्रा में बांसुरी बजाते हुए दिखाई देते हैं। इसे त्रिभंग मुद्रा इस लिए कहते हैं कि वे हमें अज्ञान की तीनों -- रुद्र-ग्रंथि, विष्णु-ग्रंथि, और ब्रह्म-ग्रंथि का भेदन करने को कह रहे हैं। बांसुरी बजाकर वे समस्त सृष्टि में प्राण फूँक रहे हैं, साथ-साथ नव-सृजन भी कर रहे हैं। वे स्वयं ही यह समस्त्त विश्व और उसके प्राण हैं। वे ही धनुर्धारी भगवान श्रीराम हैं, वे ही परमशिव हैं, और वे ही तंत्र की दसों महा-विद्याएँ हैं।

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श्रीमद्भगवद्गीता के निम्न मंत्रों में भगवान का एक बहुत बड़ा संदेश छिपा है, जिसे आप समझने की कृपा करें। समझ लोगे तो धन्य हो जाओगे।
अर्जुन उवाच
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति॥११:२८॥"
यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः॥११:२९॥"
लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ता ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो॥११:३०॥"
आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्॥११:३१॥"
श्री भगवानुवाच
कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।
ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः॥११:३२॥"
तस्मात्त्वमुत्तिष्ठ यशो लभस्व जित्वा शत्रून् भुङ्क्ष्व राज्यं समृद्धम्।
मयैवैते निहताः पूर्वमेव निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्॥११:३३॥"
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भगवान के उपरोक्त संदेश को अबश्य समझें जिसमें वे हमें निमित्त मात्र होने को कह रहे हैं। गीता का कोई प्रसिद्ध भाष्य ले लें। उस भाष्य की सहायता से उपरोक्त मंत्रों का अर्थ समझें। आप कृतकृत्य हो जाओगे।
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !! ॐॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१९ जून २०२२
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पुनश्च :--- इस लेख को लिखने का उद्देश्य ---
भगवान ने इस जीवन में जो कर्मेन्द्रियाँ और ज्ञानेंद्रियाँ दी हैं वे अपनी तन्मात्राओं सहित शिथिल होती जा रही हैं। वे पूरी तरह धोखा दें, इससे पूर्व ही उन्हें भगवान को बापस दे रहा हूँ। भगवान उन्हें अवश्य स्वीकार करेंगे।

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