Tuesday, 10 June 2025

परमात्मा ही अपना स्वरूप है ---

 

परमात्मा ही अपना स्वरूप है ---
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हम भगवान के अंश हैं, भगवान से आये हैं और भगवान में ही बापस जायेंगे; इसलिए भगवान से पृथक नहीं हो सकते। हमारी प्रसन्नता और आनंद का स्त्रोत भगवान ही हैं। हमारी पूर्णता भगवान के साथ एक होने में है, इसलिए भगवान ही हमारे सर्वस्व और हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता हैं। भगवान की परिभाषा और पूर्ण व्याख्या विष्णुपुराण में विस्तार से दी हुई है। वहीं से इसे समझें।
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प्रातःकाल उठते ही निवृत होकर ऊनी कंबल के आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह कर के ध्यान के आसन पर बैठ जाइए। कमर सीधी रहे। कुछ देर हठयोग के प्राणायाम और शिव-संहिता में दिये हुए महामुद्रा आदि आसनों का अभ्यास करें। फिर स्थिर होकर बैठिए, और हंसःयोग का तब तक अभ्यास कीजिये जब तक भगवान की अनुभूति न हो। हंसःयोग को ही अजपा-जप कहते हैं। यह एक वैदिक साधना है जिसे वेदों में हंसवती ऋक कहा गया है। परमहंस योगानन्द ने अपने पश्चिमी शिष्यों को सिखाने के लिए इसका नाम Haung-Sau Technique कर दिया। पूरा श्रीरुद्रहृदयोपनिषद इसी की महिमा बताता है। यह हंसमंत्र महाचिन्मय है, जिसका मूलबीज वेदों में हंसवती ऋक में दिया है।
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{बाबा रामदेव जी नित्य प्रातःकाल टीवी पर पातंजलि के नाम से जो हठयोग सिखाते हैं, वह विद्या पातंजलि की नहीं, बल्कि घेरण्ड-संहिता, हठयोग-प्रदीपिका और शिव-संहिता जैसे ग्रन्थों की हैं। वे इन ग्रन्थों का नाम नहीं लेते क्योंकि ये ग्रंथ नाथ-संप्रदाय से जुड़े हुए हैं। पातंजलि ने कहीं भी हठयोग की शिक्षा नहीं दी है। आचार्य शंकर के गुरु आचार्य गोविंदपाद अपने पूर्व जन्म में शेषावतार पातंजलि थे।}
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श्रीमद्भगवद्गीता व उपनिषदों में नादानुसंधान (प्रणव यानि ॐ के जप) की विधि का उल्लेख अनेक बार है। पश्चिमी शिष्यों के लिए परमहंस योगानन्द ने इसका नाम Om Technique कर दिया है। ये दोनों विधियाँ मिलकर "शिवयोग" कहलाती हैं। श्रीरुद्रहृदयोपनिषद में विस्तार से इसका उल्लेख है।
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क्रियायोग के अभ्यास से पूर्व इनका अभ्यास किया जाता है। क्रियायोग का वर्णन गीता में, योगदर्शन में, और गुरु गोरखनाथ के साहित्य में भी कूट शब्दों में है, जिसे हर कोई नहीं समझ सकता। इस विद्या को गोपनीय इसलिए रखा गया है क्योंकि इसके अभ्यास से सूक्ष्म दैवीय शक्तियों का जागरण होता है। उस समय साधक के आचार-विचार यदि सही न हों तो लाभ के स्थान पर उसे बहुत अधिक हानि हो सकती है।
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एक बार आप साधना में बैठ जाते हैं तो तब तक न उठें जब तक परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूतियाँ न हों। आपमें भक्ति और श्रद्धा होगी तो भगवान को आना ही पड़ेगा। उन्हें आने से कोई नहीं रोक सकता। दिन में कम से कम दो बार साधना करें। सप्ताह में एक दिन दीर्घकाल तक करें। परमात्मा का स्मरण हर समय करते रहें। भगवान को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जिससे हमें कोई नहीं रोक सकता। भगवत प्रेमी सब नियमों से ऊपर है। कोई नियम उसके लिए बाधक नहीं है।
"जाके प्रिय न राम बैदेही। तजिये ताहि कोटि बैरी सम, यद्यपि परम स्नेही॥
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आप सब महान आत्माओं को सादर प्रणाम !! आपका यश और कीर्ति अमर रहे।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! जय गुरु !!
कृपा शंकर
१० जून २०२२

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