एक विचित्र सी बहुत गहन तड़प मेरे हृदय में लंबे समय से है। उस तड़प में पीड़ा भी है और व्याकुलता भी। पहले तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। उस का कारण समझने का पूर्ण प्रयास किया तो समझ में आया कि तमोगुण के प्रभाव से मैं कुछ भूल कर रहा हूँ, यह उस को सुधारने का प्रकृति द्वारा दिया हुआ एक संदेश है। पूरी बात समझ में आ गयी है। यह भूल अब और नहीं होगी।
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"ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विशावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
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"अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया॥४:६॥"
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्॥४:७॥"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥४:८॥"
"जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥४:९॥"
"वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः॥४:१०॥"
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"वसुदेव सुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्। देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्॥"
"ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विशावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
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ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
२२ जून २०२४
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