Tuesday, 10 June 2025

फाँसी पर ले जाते समय बड़े जोर से कहा "वन्दे मातरम् ! भारतमाता की जय !"

 फाँसी पर ले जाते समय बड़े जोर से कहा "वन्दे मातरम् ! भारतमाता की जय !"

-- और शान्ति से चलते हुए कहा --
"मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे, बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे।
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे, तेरा ही जिक्र और तेरी जुस्तजू रहे॥"
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फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर आपने कहा --
"I wish the downfall of British Empire ! अर्थात मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ !"
उसके पश्चात यह शेर कहा --
"अब न अह्ले-वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है |"
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फिर ईश्वर का ध्यान व प्रार्थना की और --
"ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानी परासुवः यद् भद्रं तन्न आ सुवः"
वेद मंत्र का पाठ कर अपने गले में अपने ही हाथों से फाँसी का फंदा डाल दिया।
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रस्सी खींची गयी। पं.रामप्रसाद जी फाँसी पर लटक गये, आज जिनका १२७वां जन्मदिवस है।
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"तेरा गौरव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें"
उन्हीं के इन शब्दों में भारत माँ के इन अमर सुपुत्र को श्रद्धांजलि।
जय जननी जय भारत । ॐ ॐ ॐ ॥
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हे पराशक्ति ! माँ भारती, भारतवर्ष अब भ्रष्ट, कामचोर, राष्ट्र-धर्मद्रोही, झूठे और रिश्वतखोर कर्मचारियों, अधिकारियों व राजनेताओं का देश हो गया है। इन सब का समूल विनाश कर ! तेरी जय हो॥ ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
११ जून २०२४

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