मृत्यु नहीं, जीवन ही शाश्वत सत्य है। हे मृत्यु, तेरी विजय और तेरा दंश कहाँ है? तुम्हारा अस्तित्व मिथ्या है।
.भौतिक व मानसिक चेतना में मुझे चारों ओर से मृत्यु ने घेर रखा है। यह मैं स्पष्ट देख रहा कि मृत्यु मेरे सिर पर मंडरा रही है, लेकिन मैं निर्भय हूँ, क्योंकि गुरुकृपा से मृत्यु से पार जाने का मार्ग भी दृष्टि गोचर हो रहा है, जिसके अंत में स्वयं भगवान श्रीहरिः बिराजमान हैं। उस मार्ग का पथिक होने के सिवाय अन्य कोई दूसरा विकल्प नहीं है। एक दिन ये भौतिक, सूक्ष्म, और कारण शरीर, व अपनी तन्मात्राओं सहित ये सारी इंद्रियाँ, और अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) नष्ट हो जाएँगे, लेकिन एक शाश्वत दिव्य चेतना सदा बनी रहेगी, जो में स्वयं हूँ। मृत्यु मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
.
भौतिक-शरीर तो एक आधार है। वास्तविक चेतना सूक्ष्म-शरीर में होती है। यह भौतिक संसार -- तमोगुण व रजोगुण से चल रहा है। सतोगुण तो उनमें एक संतुलन बनाये रखता है। इस संसार में जिनके हृदय में स्वयं नारायण यानि भगवान विष्णु का निवास है, वे ही श्रीमान हैं, क्योंकि नारायण ने अपने हृदय में श्री को रखा हुआ है।
.
जिनके हृदय में नारायण का निवास है, श्री का अनुग्रह/कृपा उन्हीं पर होती है। अपने हृदय मंदिर में नारायण को सदा बिराजित रखें। इसी मंगलमय शुभ कामना के साथ आप सब के हृदय में नारायण को नमन !!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२९ मई २०२३
No comments:
Post a Comment