जो सर्वात्मभाव में है वह परमात्मा के साथ एक है ---
.
पता नहीं क्यों, मुझे आज का दिन बहुत अधिक शुभ लगता है। आज का दिन बहुत अधिक शुभ है, क्योंकि आज प्रातः जब मैं सो कर उठा, तब एक अति अति दुर्लभ दिव्य चेतना में था जो सामान्य नहीं है। ऐसी अनुभूतियाँ बहुत दुर्लभ होती हैं, जो जीवन में कभी कभी ही होती है। इन अनुभूतियों का वर्णन नहीं हो सकता, क्योंकि ये शब्दों से परे होती हैं। एक बात स्पष्ट है कि भगवान हमें भूलते नहीं हैं, हम ही उनको कभी कभी भूल जाते हैं। वे स्वयं ही फिर हमें याद कर लेते हैं।
.
भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं, न तो कोई उनका प्रिय है और न कोई अप्रिय। लेकिन जो उनको प्रेम से भजते हैं, भगवान उनमें हैं, और वे भी भगवान में हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --
"समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्||९:२९॥"
अर्थात् - मैं समस्त भूतों में सम हूँ, न कोई मुझे अप्रिय है और न प्रिय, परन्तु जो मुझे भक्तिपूर्वक भजते हैं, वे मुझमें और मैं भी उनमें हूँ॥
.
भगवान सभी प्राणियों के प्रति समान हैं| उनका न तो कोई द्वेष्य है और न कोई प्रिय है| वे अग्नि के समान है .... जैसे अग्नि अपने से दूर रहने वाले प्राणियों के शीत का निवारण नहीं करता, पास आने वालों का ही करता है, वैसे ही वे भक्तों पर अनुग्रह करते हैं|
.
भगवान ने कहा है .....
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
अर्थात् जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है, और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता॥
.
जो सर्वात्मभाव में है वह भगवान के साथ एक है।
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ मई २०२४
No comments:
Post a Comment