Tuesday, 6 May 2025

सत्संग सत्संग सत्संग ---

 

सत्संग सत्संग सत्संग
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भारत में और भारत से बाहर भी मेरे अनेक ऐसे मित्र हैं जिनको परमात्मा की अभीप्सा के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की आकांक्षा या कामना नहीं है। लेकिन परमात्मा ने हम सब को बहुत दूर दूर स्थापित कर रखा है। मेरा उनसे जुड़ाव सिर्फ परमात्मा में ही है। अब उनसे मिलना नहीं होता और आगे कभी होगा तो परमात्मा में ही होगा। किसी से मिलने की अब इच्छा भी नहीं है। परमात्मा निज जीवन में पूर्णतः व्यक्त हों, और सिर्फ उन्हीं की चेतना रहे। किसी भी तरह की कामना या आकांक्षा का जन्म ही न हो।
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मैं अब ऐसी कोई भी साधना नहीं करता जहाँ भोग का प्रलोभन है। सिर्फ दो ही कमियाँ मुझ में हैं। पहली कमी तो है -- प्रमाद। दूसरी है -- दीर्घसूत्रता। प्रमाद को तो भगवान सनतकुमार ने प्रत्यक्ष मृत्यु बताया हैं -- "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि"। भगवान सनतकुमार को ब्रह्मविद्या का प्रथम आचार्य बताया जाता है, क्योंकि ब्रह्मज्ञान उन्होने सर्वप्रथम अपने प्रिय शिष्य देवर्षि नारद को दिया था। उपनिषदों में ब्रह्मविद्या को "भूमा" कहा गया है।
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अपने "अच्युत" स्वरूप को भूलकर "च्युत" हो जाना ही प्रमाद है, और इसी का नाम "मृत्यु" है। जिस क्षण अपने अच्युत भाव से च्युत हुए उसी क्षण हम मर चुके हैं। यह परम सत्य है। आध्यात्मिक मार्ग पर प्रमाद ही हमारा सब से बड़ा शत्रु है| उसी के कारण हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर्य नामक -- नर्क के छः द्वारों में से किसी एक में अनायास ही प्रवेश कर जाते हैं।
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आत्मज्ञान ही ब्रह्मज्ञान है, और यही भूमा-विद्या है। इस दिशा में जो अविचल और निरंतर अग्रसर है, वही महावीर है व सभी वीरों में श्रेष्ठ है। जब तक मन में राग-द्वेष है, तब तक जप, तप, ध्यान, पूजा-पाठ आदि का कोई लाभ नहीं है, सब बेकार हैं। भगवान और गुरु महाराज सदा हमारी रक्षा करें। हम स्थितप्रज्ञ बनें।
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
श्रीरामचन्द्रचरणो शरणम् प्रपद्ये !! श्रीमते रामचंद्राय नमः !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ मई २०२४

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