Sunday, 4 May 2025

हम भगवान के किस रूप की, कौन सी साधना, किस विधि से करें? ---

हम भगवान के किस रूप की, कौन सी साधना, किस विधि से करें? ---
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उपरोक्त प्रश्न का उत्तर हम निज विवेक से अपने स्वभाव, क्षमता, आकांक्षा/अभीप्सा और उपलब्ध साधनों का आंकलन करके ही पा सकते हैं। जहाँ स्वयं का विवेक काम नहीं करता, वहाँ भगवान से मार्गदर्शन की प्रार्थना करें। जहाँ भगवान से भी कोई मार्गदर्शन नहीं मिलता वहाँ किन्हीं ऐसे संत-महात्मा से मार्गदर्शन ले सकते हैं जिन पर हमारी श्रद्धा हो। बिना श्रद्धा के तो कुछ भी नहीं मिलेगा। यदि श्रद्धा नहीं है तो परोपकार का ही कुछ काम करें।
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और कुछ भी नहीं कर सकते तो किसी का बुरा नहीं करें, और अपनी संतुष्टि के लिए कोई समाज सेवा का कार्य करते रहें। आजकल अनेक संस्थाएँ हैं जो समाजसेवा का काम करती हैं, जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने आनुषंगिक संगठनों के साथ। और भी अन्य सैंकड़ों संस्थाएँ हैं जिन में आपका मन लगा रहेगा। किसी धार्मिक क्षेत्र में काम करने की इच्छा है तो अनेक धार्मिक संस्थाएँ हैं। देश के हर भाग में अनेक मंदिर हैं जहाँ चमत्कार घटित होते हैं और लाखों श्रद्धालु हर वर्ष आते हैं। वहाँ भी समय समय पर जाते रहें। मन लगा रहेगा। रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों का स्वाध्याय करते रहें।
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ब्रह्मज्ञान तो हरिःकृपा से ही प्राप्त होता है। लाखों में से एक व्यक्ति की ही रुचि ईश्वर को उपलब्ध होने में होती है। अन्य तो भगवान के साथ व्यापार ही करते हैं। गीता में भगवान कहते हैं --
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७:१९॥"
अर्थात् - बहुत जन्मों के अन्त में (किसी एक जन्म विशेष में) ज्ञान को प्राप्त होकर कि 'यह सब वासुदेव है' ज्ञानी भक्त मुझे प्राप्त होता है; ऐसा महात्मा अति दुर्लभ है॥ कृपा शंकर ५ मई २०२३

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