यह संसार नष्ट भी हो जाये तो इसमें क्या गलत है?
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अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह --- लगता है ये सब प्राचीन भारत की बातें हैं। आजकल तो जो दिखाई दे रहा है वह इनसे विपरीत ही है। सत्य तो नारायण (सत्यनारायण) यानि सिर्फ परमात्मा है। उसका यह संसार तो झूठ-कपट से चल रहा है। जो जितनी बड़ी सत्य की बात करता है, पाते हैं कि वह उतना ही बड़ा झूठा है। आजकल कोई भी मंत्र व साधना सिद्ध नहीं होती क्योंकि असत्य-वादन से हमारी वाणी दग्ध हो जाती है, और दग्ध-वाणी से जपा गया कोई भी मंत्र कभी फलीभूत नहीं होता। आजकल राजनीति में, न्यायालयों में, सरकारी कार्यालयों में, हर स्थानों पर असत्य ही असत्य का बोलबाला है।
इस बात की आंतरिक पीड़ा मुझे बहुत अधिक होती है, जिसे ही यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ।
७ जून २०२५
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