---हनुमान् जी के विवाह की चर्चा अप्रामाणिक--- (लेखक : आचार्य सियारामदास नैयायिक)
विषय में सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ वेद और आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण है । जिससे हनुमान् जी के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है ।
अथर्वणशीर्ष जिसे अथर्ववेद का परिशिष्ट अंश सभी वैदिक विद्वान्
मानते हैं । उसके "सप्तमुखी हनुमत्कवच" में "ब्रह्मचर्याश्रमिणे" शब्द
से हनुमान् जी को ब्रह्मचर्याश्रम में स्थित बतलाया गया है । जो सपत्नीक होगा उसे ब्रह्मचर्याश्रम में कोई विज्ञ नहीं कह सकता है; क्योंकि यह आश्रम विवाह होने के पूर्व में ही माना गया है ।
विवाहोपरान्त व्यक्ति गृहस्थाश्रम में माना जाता है -यही शास्त्रीय सिद्धान्त है । अतः वेदविरुद्ध अंश में पराशरसंहिता का प्रामाण्य स्वीकार्य नहीं ।
१-यह संहिता परस्पर विरुद्ध बातें कहती है -इसलिए भी यह प्रामाणिक ग्रन्थ नहीं है ।
२-इस संहिता में अन्य ग्रन्थों के अधिक से अधिक भागों को लिया गया है । जैसे-
७४वें पटल में ३०वें श्लोक से ४८वें श्लोक तक कवच आनन्द रामायण के एकमुखी कवच की नक़ल हैं ।
८५वें पटल में सभी मन्त्र सुदर्शन संहिता के हैं -इस तथ्य को मुम्बई से प्रकाशित "हनुमदुपासना पुस्तक" से कोई भी जान सकता है ।
८८वें पटल में हनुमत्सहस्रनाम है वह भी रुद्रयामल तन्त्र का है ।
९३ पटल का सम्पूर्ण हनुमत्कवच आनन्दरामायण का है ।
पराशरसंहिताकार ने तो हनुमान् जी को ११९वें पटल में पिशाच बना दिया है । जबकि वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड के अनुसार हनुमान्
जी चिरंजीवी हैं । ७ चिरंजीवियों में "हनूमांश्च विभीशणः।" से हनुमान्
जी का ग्रहण है ।
क्या हनुमान् शरीर से रामकथा के प्रचार प्रसार तक रहते हनुमान् जी पिशाच बन सकते हैं ? -इससे कुत्सित कल्पना दूसरी और क्या हो सकती है ?
पराशरसंहिता में लिखा है कि हनुमान् जी सुवर्चला के स्तन पर हाथ रखे हुए हैं । ये कैसा ब्रह्मचर्य है ? पराशरसंहिताकार की दृष्टि से ।
सूर्य की पुत्री तपती की चर्चा पुराणों में है किन्तु सुवर्चला की चर्चा पराशरसंहिता से अन्यत्र क्यों नहीं ?
दक्षिण भारत में मामा की लड़की से शादी के लिए ५-६- साल तक प्रतीक्षा करनी पड़े तो दाक्षिणात्य प्रसन्न हो जाता है । कुमारिल भट्ट
जैसे महामीमांसक लिखते हैं कि मामा की लड़की से विवाह करके दाक्षिणात्य प्रसन्न हो जाता है-
" मातुलस्य सुतामूढ्वा दाक्षिणात्यः प्रहृष्यति ।" ।
दाक्षिणात्य तो भगवान् के मोहिनी अवतार से शिव जी द्वारा एक पुत्र की उत्पत्ति की कल्पना करके मन्दिर बना बैठे हैं जिसे "अयप्पा" कहते हैं । यह भी भागवत आदि पुराणों से विरुद्ध है ।
पराशर संहिता एक अर्वाचीन ग्रन्थ है । वाल्मीकि रामायण के अनुसार सूर्य भगवान् ने हनुमान् जी को समस्त विद्यायें प्रदान करने का वरदान दिया है । फिर ये ४ विद्यायें कौन हैं जो सभी विद्याओं की परिधि में नहीं आतीं ?
सूर्यपुत्री सुवर्चला काल्पनिक है । सूर्यपुत्री केवल तपती ही हैं । हनुमान् जी को "ब्रह्मचर्याश्रमिणे" से ब्रह्मचर्य आश्रम में स्थित कहा गया है । इससे विरुद्ध उनके विवाह की कल्पना और मन्दिर केवल अय्यप्पा या साईमन्दिर के समान है ।
दैनिक भास्कर जी आप या आपका बुद्धिजीवी कोई भी पत्रकार या आपसे सम्बन्धित कोई भी विद्वान् मेरे कोमेन्ट का उत्तर कर सकता है तो करे । आपकी पूरी पोस्ट प्रमाणविरुद्ध है ।
जय श्रीराम
आचार्य सियारामदास नैयायिक
१९ जून २०१५
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