हमारे सभी दुःखों का कारण :----
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"खं" शब्द ब्रह्म यानी परमात्मा के लिए प्रयुक्त हुआ है| आकाश तत्व को भी "ख" कहते हैं| दुःख का अर्थ है .... परमात्मा से दूरी, और सुख का अर्थ है परमात्मा से समीपता| सुख सिर्फ परमात्मा में है, अन्यत्र कहीं भी नहीं| संसार में सुख की खोज ही सब दुःखों का कारण है| मनुष्य संसार में सुख ढूंढ़ता है पर निराशा ही हाथ लगती है| सुख की अपेक्षा सदा दुःखदायी है| परमात्मा से अहैतुकी परम प्रेम -- आनंददायी है| उस आनंद की एक झलक पाने के पश्चात ही संसार की असारता का बोध होता है| प्रभुप्रेमी की सबसे बड़ी सम्पत्ति --- "उनके" श्री-चरणों में आश्रय पाना है|
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जो योग-मार्ग के पथिक हैं उनके लिए सहस्त्रार ही गुरुचरण है| आज्ञाचक्र का भेदन और सहस्त्रार में स्थिति बिना गुरुकृपा के नहीं होती| जब चेतना उत्तरा-सुषुम्ना यानि आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य विचरण करने लगे तब समझ लेना चाहिए कि गुरु की कृपा हो रही है| जब स्वाभाविक और सहज रूप से सहस्त्रार में व उससे ऊपर की ज्योतिर्मय विराटता में ध्यान होने लगे तब समझ लेना चाहिए कि श्रीगुरुचरणों में अर्थात प्रभुचरणों में आश्रय प्राप्त हो गया है| तब भूल से भी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए| एक सिद्ध योगी की चेतना वैसे भी आज्ञा चक्र से ऊपर ही रहती है| लक्ष्य यही हो कि चैतन्य की स्थायी स्थिति सहस्त्रार व उससे उपर ही हो|
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परमात्मा से दूरी ही हमारे सभी दुःखों का कारण है| सुख सिर्फ परमात्मा में ही है, अन्यत्र कहीं भी नहीं| परमप्रेम, अभीप्सा और श्रीहरिः कृपा के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है|
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ॐ तत्सत् ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
९ जून २०१४
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