Thursday, 5 June 2025

चारों ओर का संसार और यह सृष्टि कैसी भी हो ---

 

चारों ओर का संसार और यह सृष्टि कैसी भी हो, क्या सही है और क्या गलत, इसका बोध शास्त्रों के स्वाध्याय और परमात्मा की कृपा से ही होता है| परमात्मा की कृपा ही हमारी रक्षा भी करती है| कुछ बातें यदि ध्यान में रहे तो हम विचलित नहीं हो सकते .....
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पहली बात तो यह है कि यह सृष्टि परमात्मा की है, हमारी नहीं| परमात्मा अपनी सृष्टि को कैसे भी चलाएँ, वे स्वयं ही इसके लिए जिम्मेदार हैं, हम नहीं| उनकी प्रकृति अपने नियमों के अनुसार सृष्टि का संचालन कर रही है| नियमों को न समझना हमारी अज्ञानता है जिसका दंड हमें भुगतना पड़ता है|
दूसरी बात यह है कि वासनाओं से मुक्त होकर हम नित्यमुक्त और परमात्मा के साथ एक हैं, हम यह देह नहीं हैं| हमारी वासनायें .... राग-द्वेष और अहंकार हमें बारंबार पुनर्जन्म लेने को बाध्य करती हैं| इनसे मुक्त होते ही हम वास्तब में मुक्त हैं| सारी उपासनाओं का यही ध्येय है|
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गीता के निम्न श्लोकों का स्वाध्याय इस विषय को समझने में लाभदायक होगा ....
"अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप| अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि||९:३||"
"मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना| मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः||९:४||"
"न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्| भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः||९:५||"
"यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्| तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय||९:६||"
"सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्| कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्||९:७||"
"प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः| भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्||९:८||"
"न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय| उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु||९:९||"
"मयाऽध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्| हेतुनाऽनेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते||९:१०||"
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ॐ तत्सत् !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जून २०२०

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