बलहीन को परमात्मा कभी भी नहीं मिल सकते ......
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श्रुति भगवती स्पष्ट कहती है .... नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात् तपसो वाप्यलिङ्गात्| एतैरुपायैर्यतते यस्तु विद्वां-स्तस्यैष आत्मा विशते ब्रह्मधाम || मुण्डक ३:२:४ ||
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बलहीन, आलसी व तपहीन व्यक्ति कभी भी परमात्मा को प्राप्त नहीं कर सकते| ऐसे व्यक्ति संसार में भी किसी काम के नहीं होते| भारत में आसुरी शक्तियों को पराभूत करने के लिए हमें साधना द्वारा दैवीय शक्तियों को जागृत कर उनकी सहायता लेनी ही होगी| आज हमें एक ब्रह्मशक्ति की आवश्यकता है, जिसके लिए साधना करनी होगी| सिर्फ बातों से या शोर मचाने से यह कार्य नहीं हो सकता| जब ब्रह्मत्व जागृत होगा तो क्षातृत्व भी जागृत होगा| अनेक लोगों को इसके लिए साधना करनी होगी, अन्यथा हम लुप्त हो जायेंगे|
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युवा वर्ग को चाहिए कि वे अपनी देह को तो शक्तिशाली बनाए ही, बुद्धिबल और विवेक को भी बढ़ाएँ| उपनिषदों का ही उपदेश है ... "अश्मा भव, पर्शुर्भव, हिरण्यमस्तृताम् भव|"
यानी तूँ पहिले तो चट्टान की तरह बन, चाहे कितने भी प्रवाह और प्रहार हों पर अडिग रह| फिर तूँ परशु की तरह तीक्ष्ण हो, कोई तुझ पर गिरे वह भी कटे और तूँ जिस पर गिरे वह भी कटे| पर तेरे में स्वर्ण की पवित्रता भी हो, तेरे में कोई खोट न हो|
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हमारे शास्त्रों में कहीं भी कमजोरी का उपदेश नहीं है| हमारे तो आदर्श हनुमानजी हैं जिनमें अतुलित बल भी हैं और ज्ञानियों में अग्रगण्य भी हैं|
धनुर्धारी भगवान श्रीराम और सुदर्शनचक्रधारी भगवन श्रीकृष्ण हमारे आराध्य देव हैं| हम शक्ति के उपासक हैं, हमारे हर देवी/देवता के हाथ में अस्त्र शस्त्र हैं|
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भारत का उत्थान होगा तो एक प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति से ही होगा जो हमें ही जागृत करनी होगी| सिर्फ बातों से कुछ नहीं होगा| हमें ब्रह्मचारी तपस्वी साधक बनना होगा, तभी हम धर्म की रक्षा कर पायेंगे| हर हर महादेव !
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जून २०१५
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