मौन-साधना ---
कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ। मौन-साधना का विकल्प ही चुन रहा हूँ। अब मौन साधना ही अच्छी लग रही है, जिसका एकमात्र उद्देश्य -- परमात्मा को पूर्ण-समर्पण है। कोई आकांक्षा/कामना नहीं है। इस जीवन में खूब सत्संग, स्वाध्याय और साधना का साक्षी हूँ, अतः परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी से किसी भी प्रकार के मार्गदर्शन की आवश्यकता अब नहीं है। आध्यात्मिक अनुभूतियाँ ही मेरा मार्गदर्शन करती हैं।
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धर्म की रक्षा, और अधर्म के नाश के लिये भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण जैसे अवतारों की भारत को आवश्यकता है। राष्ट्र की अस्मिता पर मर्मान्तक प्रहार हो रहे हैं। राष्ट्र आज बहुत अधिक आहत है। मेरे ह्रदय की पीड़ा भारत की पीड़ा है। हम लोग दायित्व बोध से रहित, और प्रज्ञाहीन हो गये हैं। भगवान अपने सभी भक्तों, और राष्ट्र की रक्षा करें।
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पुनश्च: ---
(प्रश्न) : सूर्य, चन्द्र और तारों को चमकने, पुष्प को महकने, व महासागर को इतनी जल राशि एकत्र करने के लिये कौन सी साधना या तप करना पड़ता है?
(उत्तर) : शांत होकर प्रभु को अपने भीतर प्रवाहित होने दो। उनका विलय अपने अस्तित्व में कर दो। उनकी उपस्थिति के प्रकाश से जब ह्रदय पुष्प की भक्ति रूपी पंखुड़ियाँ खिलेंगी तो उनकी महक अपने ह्रदय से सर्वत्र फ़ैल जायेंगी। हरिः ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२५ अप्रेल २०२५
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