जहाँ तक ईरान-इज़राइल युद्ध की बात है, इसमें नया कुछ भी नहीं है। इस युद्ध की घोषणा तो ४५ वरसों पूर्व सन १९७९ में ईरान में इस्लामिक क्रांति के पश्चात सत्ता में आते ही ईरान के तत्कालिक मुल्ला-मौलवी शासकों ने कर दी थी। मैं उन दिनों बीबीसी लंदन से समाचार सुना करता था। यह बीबीसी के समाचारों में ही था कि सत्ता में आते ही ईरान के तत्कालीन शासनाध्यक्ष ने घोषणा की थी कि एक दिन वे इज़राइल को लाल-सागर में दफन कर देंगे।
.
हालांकि यहूदीयत, ईसाईयत, और इस्लाम --- तीनों मज़हबों का आरंभ हज़रत इब्राहिम (Prophet Abraham) अलैहिस्सलाम से हुआ है। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बड़े बेटे हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम के खानदान में हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हुए जिनसे इस्लाम की शुरुआत हुई। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के छोटे बेटे हज़रत इसाक अलैहिस्सलाम से यहूदी मज़हब चला। उन्हीं के खानदान में जन्म लिए हज़रत ईसा ने ईसाई मज़हब चलाया।
.
जैसे एक ही खानदान के लोगों में दुश्मनी हो जाती है, वैसे ही यहूदियों और मुसलमानों में शुरू से ही खानदानी दुश्मनी है। इस विषय पर अधिक लिखना उचित नहीं है। जिन को रुचि है वे इंटरनेट से विकिपीडिया पर जाकर पढ़ सकते हैं।
.
इज़राइल को जन्म देने के लिए ही इंग्लैंड ने प्रथम विश्व युद्ध में अपने मित्र देशों की सहायता से सल्तनत-ए-उस्मानिया को हराया और उस उस्मानिया सल्तनत के चालीस टुकड़े कर के चालीस नए देश बना दिये, जिन में इज़राइल भी है। उस्मानिया-सल्तनत के अंतिम वर्षों के इतिहास को पढे बिना इस विषय को समझना कठिन है।
.
पुनश्च: --- सल्तनत-ए-उस्मानिया के प्रमुख को खलीफा कहते थे। सल्तनत-ए-उस्मानिया (Ottoman Empire) के ३६ वें खलीफा सुल्तान महमूद (छठा) वहिदेद्दीन को कमाल अतातुर्क ने अपदस्थ कर के तुर्की से इटली और फिर फ्रांस भगा दिया था। उसका बेटा अब्दुल मजीद (द्वितीय) २३ अगस्त १९४४ को पेरिस में निर्वासित जीवन जीता हुआ मर गया| भारत में महात्मा गांधी ने इसी अब्दुल मजीद को बापस तुर्की की राजगद्दी दिलाने के किए खिलाफत आंदोलन शुरू किया था जिससे बहुत अधिक हानि हुई| पाकिस्तान की नींव भी इसी आंदोलन से पड़ी। और भी कई बातें हैं जिन्हें पूर्व में लिख चुका हूँ। और अधिक लिखने का अब धैर्य नहीं है।
कृपा शंकर
१६ अप्रेल २०२४
No comments:
Post a Comment