भगवान कहते हैं कि यह सम्पूर्ण सृष्टि तुम स्वयं हो। यह समस्त सृष्टि हमारा ही प्रतिबिंब है। स्वयं को परिवर्तित करो, और यह भौतिक सृष्टि भी परिवर्तित हो जायेगी। अपने प्रतिबिंब पर दोषारोपण मत करो। हम अकिंचन-भाव में रहें या परमशिव-भाव में, बात एक ही है। परमात्मा के ध्यान में यह अकिंचन-भाव, परमशिव-भाव में परिवर्तित हो जाता है। यह काम केवल बातों से नहीं होगा। धरातल पर परमात्मा का गहन व दीर्घ ध्यान और साधना करनी होगी। ऊर्ध्वस्थ कूटस्थ सूर्यमण्डल में भगवान पुरुषोत्तम का ध्यान करें।
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"ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्॥"
"सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्॥"
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥"
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥"
"यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते॥"
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"
ॐ तत्सत्॥
कृपा शंकर
२६ अप्रेल २०२५
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