विवाह की संस्था लगभग नष्ट होने लगी है। प्रबुद्धजन इसे बचाने का प्रयास करें --
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आजकल नव-विवाहितों के दाम्पत्य जीवन में बहुत अधिक तनाव रहने लगा है। इसका प्रमुख कारण पति-पत्नी दोनों की ओर से बहुत अधिक अपेक्षा है। दूसरा कारण देरी से यानि बढ़ी हुई आयु में विवाह करना है। बढ़ी हुई आयु में विचार परिपक्व हो जाते हैं, और सामंजस्य नहीं बैठता। फिर तनाव और कलह रहता है। लोग अच्छी आजीविका (Career) बनाने के चक्कर में देरी से विवाह करते हैं, जो गलत है। किसी भी परिस्थिति में युवती का विवाह २१ वर्ष तक की आयु में, और युवक का विवाह २५ वर्ष तक की आयु में हो जाना चाहिये। फिर अपनी आजीविका (career) विवाह के बाद बनाते रहो।
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आजकल विवश होकर पति-पत्नी और उन के घरवाले एक दूसरे को सुधारने के लिए अनेक अनुष्ठान और पूजा-पाठ करवाते हैं। उनसे कोई लाभ नहीं होता, केवल धन का अपव्यय होता है। ऐसा कोई मंत्र-तंत्र, अनुष्ठान या विद्या नहीं है जो किसी को अपने अनुकूल बना सके या सुधार सके। समाज में ठग लोग भरे पड़े हैं। दुःखी होकर पीड़ित व्यक्ति ऐसे ठगों के चक्कर में पड़ जाता है, और सब कुछ ठगा जाता है। यह आस्था का शोषण है।
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यदि पति-पत्नी में नहीं बनती तो आपसी सहमति से संबंध-विच्छेद कर लो और दूसरा विवाह कर लो। एक-दूसरे पर झूठे आरोप लगाने, और चरित्र-हनन से तो यही ठीक है। सरकार को भी चाहिए कि विवाह-विच्छेद (तलाक) के कानून सरल बना दे। आजकल तो परिस्थितियाँ बड़ी विकट हैं।
१९ अप्रेल २०२५
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