एक बहुत भयानक तमोगुण नामक असुर मेरे अवचेतन मन में छिपा हुआ बैठा है। वह असुर अमर है, उसे कोई नहीं मार सकता।वही मेरे सब दुःखों का कारण है। उससे मुक्ति केवल भगवान परमशिव ही दिला सकते हैं। भगवान मुझे तीनों गुणों से मुक्त कर निस्त्रेगुण्य (त्रिगुणातीत), वीतराग, और स्थितप्रज्ञ बनायें। स्थितप्रज्ञता के लिए त्रिगुणातीत और वीतराग होना आवश्यक है। मेरी प्रज्ञा परमात्मा में स्थित रहे। परमात्मा के हृदय में ही मेरा स्थायी निवास हो। यही मेरी अभीप्सा है। परमशिव के अतिरिक्त मेरा अन्य कोई आश्रय नहीं है। परमात्मा के कृपा सिंधु में अति गहरी डुबकी लगाने का समय आ गया है। अनमोल मोती मिल रहे हैं, अन्यथा पछताना पड़ेगा। भक्त या साधक होने का भाव एक अहंकार है। हम निमित्त मात्र ही हो सकते हैं, कर्ता और भोक्ता केवल परमात्मा हैं।
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