(संशोधित व पुनर्प्रेषित) कर्म, भक्ति और ज्ञान में यथार्थतः कोई भेद नहीं है ---
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गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने तीन ही विषयों पर बात की है -- कर्म, भक्ति और ज्ञान। समग्रता से देखें तो इनमें कोई भेद नहीं है।
हमारे विचार, भाव, व कामनाएँ -- हमारे कर्म हैं। जो भी हम सोचते हैं, या चाहते हैं, -- वह हमारे कर्मों के खाते में जुड़ जाता है।
भगवान से परमप्रेम -- भक्ति है। भक्ति से हमारा अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार) पवित्र होता है।
अन्तःकरण के पवित्र होने पर ज्ञान की सिद्धी होती है।
ज्ञान की सिद्धि से समत्व में स्थिति होती है। तब सिद्धी और असिद्धि में कोई भेद नहीं रहता।
यह समत्व ही गीता का योग है।
वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण सदा हमारे दृष्टिपथ में बने रहें। कभी भी हमारी दृष्टि से ओझल न हों। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
३१ मार्च २०२१
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