Thursday, 27 April 2017

वृक्षारोपण ....

वृक्षारोपण ....
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अभी भीषण ग्रीष्म ऋतू चल रही है| दो माह पश्चात् वर्षा ऋतू का आगमन होगा| उस समय तरह तरह के वृक्षों का रोपण होगा| पर आजकल एक रुझान चल पडा है .... गुलमोहर, सफेदा (युकलिप्टिस) जैसे सजावटी वृक्ष ही लगाने का| सफेदा तो वहीँ लगाना चाहिए जहाँ भूमि पर बहुत अधिक दलदल है, अन्यथा नहीं| कुछ वृक्ष हैं जो पर्यावरण के लिए बहुत अधिक लाभदायक है जैसे बड़ (वट), पीपल, खेजड़ी, रोहिड़ा व नीम आदि, जिनकी उपेक्षा की जा रही है|
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मरुभूमि में खेजड़ी का वृक्ष अमृत वृक्ष है| इसे प्राचीन काल में शमी वृक्ष कहते थे| इसकी लकड़ियों से ही यज्ञादि होते थे इसलिए इसकी लकड़ी को समिधा कहते थे| इसकी छाया में भी भूमि उर्बरा रहती है और इसकी पत्तियाँ तो जानवरों के लिए सर्वश्रेष्ठ चारा है| जहाँ ये वृक्ष प्रचुर मात्रा में होते थे वहाँ कृष्णमृग (काले हिरन) निर्भय होकर खूब घूमते थे| जहाँ कृष्णमृग निर्भय घुमते हैं वह पवित्र यज्ञभूमि होती है| ग्रामीण क्षेत्र में खेजड़ी को बहुत पवित्र वृक्ष मानते हैं|
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पीपल, बड़, नीम और खेजड़ी के वृक्ष व तुलसी के पौधे लगाना तो पुण्य का काम माना जाता था| ये पर्यावरण के लिए सर्वश्रेष्ठ वृक्ष हैं, पर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इनकी उपेक्षा की जा रही है| क्या ये सांप्रदायिक पेड़-पौधे हैं? और सजावटी वृक्ष सेकुलर हैं?
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बाहर के पर्यावरण जितना ही महत्वपूर्ण है -- भीतर का पर्यावरण, जो परमात्मा के निरंतर ध्यान से ही पवित्र होता है। निरंतर परमात्मा का अनुस्मरण करो, और परमात्मा को स्वयं में व्यक्त करो। आपका जीवन धन्य हो जायेगा, आप इस पृथ्वी पर चलते-फिरते देवता बन जाओगे। जहां भी आपके चरण पड़ेंगे वह भूमि सनाथ और पवित्र हो जाएगी। नित्य, नियमित, गहन, और दीर्घकाल तक उपासना आवश्यक है, अन्यथा मुमुक्षुत्व ही लुप्त हो जाता है। साधक, साध्य और साधना तीनों एक हैं। भगवत्-प्राप्ति का मौसम चल रहा है। परमात्मा को उपलब्ध होने का सबसे अच्छा मौसम है यह।

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